लेबल

2.9.17

पचपन का यौवन ......





 दाढ़ी जब से सफ़ेद है मेरी ,
 हुस्न वालों ने आँख है फेरी ....
                               कैसे बतलाऊं इनको, कैसा हूँ ,
                               यारों ! मैं नारियल के जैसा हूँ ...
                               हाथ में ले के मुझको तोड़ो तो !
                               मेरे अन्दर गिरी को फोड़ो तो !
कितना समझाया इन हसीनों को ,
ठीक करता हूँ मैं मशीनों को ....
एक बोइंग सा हाल है मेरा ,
दिल अभी भी कमाल है मेरा ....
                                उम्र थोड़ी सी ढल गयी तो क्या ?
                                मेरी नीयत फिसल गयी तो क्या ?
                                इतने अरमां मेरी कहानी में,
                                खत्म ना हो सके जवानी में ...

23.8.17

कविता !




कविता ! 
तुम टूट गयीं , मुझ सी ,

कुछ टूटे-फूटे दांत लिए, 
कुछ दबे हुए संवाद लिए 
कुछ अपनापन , विच्छिन्न , विवश 
कुछ विषम प्रकृति का स्वाद लिए ...

कविता !
 तुम छूट गयीं , मुझ सी 

ज्यों अल्प प्राण पर बुढिया सी ,
ज्यों एक वयस्का के गुड़िया सी,
ज्यों ठन्डे बोतल की गड-गड पर
होती हालत है हँड़िया की..

क्यों बदल न पायीं कविता तुम ! शायद तुम मेरे जैसी हो..
जो पढ़े , वही पहचानेगा , तुम जैसी थीं , तुम वैसी हो ....

6.5.17

आह्वान




आह्वान ......... 


कुछ  भी न सार्थक जीवन में, मैं बंधा हार के  बंधन में ,

करबद्ध व्यर्थ ही खड़ा रहा , मंदिर के सूने प्रांगण में। 



स्वार्थ व्यर्थ , परमार्थ व्यर्थ , अवरुद्ध हुआ चीत्कार व्यर्थ 

 मैं दीन ,  दलित सा खड़ा हुआ , अर्चना व्यर्थ , प्रार्थना व्यर्थ।      
  

अपने ही पैरों को   छूकर , आशोष दे  रहे   हाथ मेरे,

मैं भूला , खुद को ढूंढ रहा, कोई न कभी ना साथ मेरे। 


सम्बन्ध जटिल, अधिकार कुण्ठ , मनु किससे बांटे पीड़ापन ,

डाटा श्रेणी में मत गिनना , मई सतत अकिंचन , हे श्रीमन !

7.2.17

Bhajan


कृष्ण  भजन ----


1..

श्याम मिलन को जाऊं सखी री---श्याम मिलान को जाऊं 

नदी तीर नाचूँ राधा बन , अँखियन  उन्हें बसाऊं सखी री ---श्याम मिलन को 

पीले वसन बना के  घूँघट, श्याम संग इतराऊं सखी री। ..श्याम मिलान को  

छीन मुरलिया भागूं बन में, उन के हाथ ना आऊं सखी री। .श्याम मिलान को 

ओट पर ना श्याम दिखें तो , नैनन नीर बहाऊँ सखी री।  श्याम मिलान को 

श्याम रंग आँखों से  के , मैं श्यामल हो  जाऊं सखी री।  श्याम मिलान को


2..

बृज सूना तुम  बिन गोपाला ---

पनघट सूने,रोती जमुना, वृन्दावन हुआ काला ----बृज सूना तुम   बिन गोपाला

टूटी डाल , फूल बिखरे हैं , दहके बिरह की ज्वाला---बृज सूना तुम बिन गोपाला

गोप गोपिका सांस धरे बस , बरसात नभ से हाला ---बृज सूना तुम बिन गोपाला

मुरली बंद , बंद  है  धड़कन , कैसा बैर  निकाला ---बृज सूना तुम बिन गोपाला

गिरत अंगार , रात ज्यों आवत , देख तो जा नंदलाला --बृज  सूना तुम बिन गोपाला



३...

नाचत श्याम , नचावति राधा ... ... 





24.1.17

for kids



हाय  री  पढ़ाई  !



अप्रैल में स्कूल खुला, और मई  से शुरू पढ़ाई ,

भीग भीग कर आते - जाते, बीती जून जुलाई। .


अभी किताबें छुई नहीं थीं , फर्स्ट टर्म आ धमका

टाइम टेबल में गैप नहीं था, मेरा माथा ठनका।


टेबल, टेबल लैंप, किताबें , इनको  गले लगाकर ,
,
इक इक  दिन मुश्किल में  काटा , मैंने अगस्त में आकर.


सेप्टेम्बर  की नरम सुबह, मन सोने को ललचाये ,

आँखों में अंगार डाल, आये पापा  झल्लाये।


सबक  सीख कुछ मार्कशीट से,  कर थोड़ी  तैयारी

सेकंड टर्म की कठिन परीक्षा, है तलवार दुधारी।


दुर्गा पूजा  और   दशहरा , कैसे बैठूँ  पढने ,

ढोल ,मृदंग मजीरा सुन, मन लगता ऊधम मचाने।


अक्टूबर और नवम्बर ,फुलझड़ियों संग बाहर,

देखा  तब तो  खड़ा हुआ था सेकंड टर्म मुँह  बाकर।


राम राम कर जैसे तैसे , गया दिसंबर बीत ,

नाना की   गोदी में कट गयी , आधी सर्दी , शीत।


 और लबादा ओढ़े ओढ़े , बीत गयी जनवरी ,

तभी एक दिन पापा  पूछे , कैसी है तैयारी ?


एक  महीना बाकी है बस, इम्तहान होने में ,

सारी  छुट्टी बिता दिया बस खेल कूद, सोने में।


हालत खस्ता हुई हमारी,कोर्स बहुत है बाकी,

मुई फरवरी अट्ठाईस की, वो भी हुई न साथी।


मार्च महीने में है फाइनल , खड़ा हिमालय जैसा,

अभी पढ़ाई नहीं किया तो , फल  निकलेगा कैसा।


 और फरवरी काटी मैंने , आँखे गड़ा गड़ा कर ,

गलती का   एहसास हुआ तब ,मन ही मन पछताकर।




भुलक्कड़ नानाजी ..... ...



नाना मेरे लंबे चौड़े , डील डाल के भारी,

मगर भूल जाने की उनको बहुत बड़ी बीमारी। ..


आइसक्रीम का किया था वादा , भूल गए पर शायद ,

 खाना खा कर बैठे हैं वो,  मैं  कर रही क़वायद।


मम्मी बैठी इस कोने में , पापा अगल बगल में ,

कुछ बोली तो डाँट  पड़ेगी , पड़ गयी मैं मुश्किल में।


 खाँस खाँस कर किसी तरह से उनका ध्यान बंटाया ,

आइसक्रीम मुझे खानी , यह संकेतों में समझाया।


 नानाजी झट उठ कर बोले चलो सैर कर आएं ,

घर के अंदर बड़ी गरम है, खुली हवा  जाएँ।


नानाजी हाथ पकड़ कर,  झट मैं भागी  बाहर ,

दो दो कप खाया दोनों ने , दो दो मिनट के अंदर।


ये क्या ! ठंडा खाकर भी क्यों , नाना बहा पसीना  ?

अरे बाप रे ! भूल गए थे , जेब में पैसे रखना।





स्कूल  का सपना ......... 


ईश्वर !   सच कर मेरा सपना ,

एक मेरा स्कूल हो   अपना  . 

छड़ी  हाथ में, आँख पे चश्मा,

नाम हो मेरा, मिस  क्रिश्टिमा ,

सारी मिस आएं पढने को,

मेरी कैनिंग  से डरने को 


मिस सरला  को  लेट मैं  पाऊं 

अच्छी खासी डाँट पिलाऊँ। . 

मिस रूही को होम वर्क दूं ,

नेहा के पेरेंट्स बुलाऊँ ,


डॉग रूम की धमकी दे कर 

मन ही मन में मैं मुस्काऊँ। 

कान पकड़वाकर कैप्टेन के 

धूप में छह चक्कर लगवाऊं। 


पांच बजे तड़के  पापा से 

हिस्ट्री क्वेश्चन याद  कराऊँ। 

कहीं अटक जाएँ पापा तो,

पॉकेट मनी हजम कर जाऊं। 


मम्मी को   झिड़कूं खाने पर 

इतना भी खाया ना जाये ,

इसीलिये दुबली पतली है ,

बोझ बैग का उठा न पाए। 


ऐसा हो कुछ जादू मंतर,

उलट पलट हो जाए,

भोर में देखा सपना मैंने ,

शायद सच हो जाए। 



मेरी सजावट ..... 


जन्म दिन है मेरा माँ तो, मुझको ज़रा सजा  दो ना ,

जिसको ना पहनी हो अब तक , ऐसी फ्रॉक बना दो ना।


आसमान सा रंग हो जिसका , जड़े हों कई सितारे,

चन्दा सा इक बॉब लगा दो, जिसको देखें सारे।


बाहों का रंग बादल जैसा , मटमैला  और  सादा ,

आधी उसमे रुई भरी हो, और हो  पानी आधा।


इंद्रधनुष का   पैच वर्क हो , इन बाहों के नीचे ,

दंग  करे इस दुनिया को जब , हाथ करुं मैं पीछे।


और किनारा करना उसका , सागर के रंग जैसा ,

बीच बीच में हरा रंग हो , वन  उपवन के जैसा।


सूरज का  मेकअप करना माँ ! तुम मेरे चेहरे पर ,

हेयर बैंड सुनहरा  रखना, मेरे सर के ऊपर।


रूप अनोखा ले इतराऊं , मुझको आज  सजा दो माँ !

मेरे जैसा ना हो कोई , मुझको प्रकृति बना दो माँ !




हाथी का जुकाम ...... 



एक दिवस हाथी को हो गया ,

बहुत ही अधिक जुकाम ,

छींक उसे इतनी आयी कि ,

हुआ काम से वह बेकाम. . 


दौड़ा बैद की ओर तभी 

और बैद  थे श्री  सियार ,

उसे देख कर बोले तुमको 

हुआ अरे , क्या यार !


हाथी बोला , नाक को मेरी 

तुम ही  ज़रा समझाओ ,

 हुआ जुकाम मुझे भारी 

अब तुम ही मुझे बचाओ। 


सियार बोला , जाने तुमको 

दवा लगेगी  कितनी ,

अगर जुकाम हटाना है तो 

नाक कटा  दो  अपनी। 




मीठा झगड़ा -------


अकड़ के बोली गोल जलेबी , मुझसा  कौन रसीला ,

मुझको चाहे सारी दुनिया  , गाँव , शहर, औ  कबीला ।   


रबड़ी बोली चुप कर झूठी, मुझको क्या बतलाती ,

मुझको पाकर सारी दुनिया, बर्तन चट कर जाती ।  


काला जाम हँसा , हो हो कर, नहीं मिसाल हमारी ,

जिसका काला रंग हो उस पर मरती दुनिया सारी ।


सावन के बादल हैं काले , कृष्ण हैं काले , काले राम ,

जितना काला उतना मीठा, सबसे बढ़िया  काला जाम ।


रसगुल्ले ने देखा सबको , हल्की सी मुसकान भरी ,

मुझे चाहते राजा,  रानी,  बच्चे , बूढ़े   और   परी ।


 मन भी उजाला, तन भी  उजला , अंग अंग में मीठापन ,

मुझसे सुन्दर नहीं कोई है, देखा लो सब जाकर दर्पण ।


दूध बीच में आकर बोला,अब मत करो बड़ाई ,

मेरे ही कारण तुम सब ने, अपनी शान बढ़ाई ।


मेरे घी में तली जलेबी, मुझसे बनती  रबड़ी ,

काला जाम बने खोये से, क्यों डींग हांकता तगड़ी ।


मुझसे ही  छेना  बनता  है, छेने से रसगुल्ला ,

क्यों बघारते हो तुम शेखी , यूं ही खुल्लम खुल्ला । ,


मैं हूँ पिता तुम्हारा , तुम सब मुझको करो प्रणाम ,

मिलकर रहना भाई बहनों,  जाओ करो आराम ।




27.8.16

Ghazalen



तेरी   याद ---


बड़ी  अजीब है , हर  रोज़   चली  आती है ,
ये  शाम  आ  के   तेरा नाम गुनगुनाती  है। 

उदास   बैठे  हैं , मंजर  पे  तेरी  यादों के ,
कि डूबती सी किरण , फिर से छेड़ जाती है। 

बिखरती  बूँद  का पानी भरा है  आँखों  में ,
कही  किनारे   पे, तस्वीर  तैर   जाती  है। 

मिज़ाज कैसा है उनका , ये पूंछते क्यों हो ?
मेरी  नज़र में वो  हर,  वक़्त मुस्कुराती है। 

डुबो  ही  देते  कहीं,  काश ! तेरी   यादों को ,
ये ग़म-गुसार  लहर , फिर से खोज लाती है। 

न जाने किसने शफ़क़ !, सब्र का दामन थामा ,
बड़ी    शरीर     है , तनहाई     मुस्कुराती   है। 






कुछ तो बोलिये ---- 


ढल   रही   है शाम , कुछ  तो    बोलिए। 
छोड़िये    अंजाम ,  कुछ   तो   बोलिए।

ना     कोई    जज़्बात   आँखों   से  बहे ,
दिल   को हांथों थाम, कुछ तो बोलिये। 

मत   कुरेदो   ज़ख्म   ताज़ा   हैं   अभी,
बन के फिर अनजान, कुछ तो बोलिए। 

और   कितनी  तोहमतें  सर पर लिए,
इश्क़  है   नाकाम, कुछ   तो बोलिये। 

हाथ   फैलाने   से   कुछ    होगा   नहीं,
है   खुदा   नाकाम, कुछ  तो    बोलिए। 

रात   की   स्याही   में  डूबी  है शफ़क़ ,
रौशनी   गुमनाम , कुछ   तो   बोलिए।



                   याद आयी है.… एक ग़ज़ल




 आज   फिर  तेरी याद  आयी है।
ज़िन्दगी ठहरी है, मुस्कुराई है।

मैं भी तनहा हूँ , तू भी तनहा है
जोड़ती  दोनों  को , तनहाई  है।

छू  लो  अलफ़ाज़ अपने  होंटों से
दिल ने सुनने की क़सम  खायी है।
 वक़्त  की  छाँव के ,  धुंधलके में
मर के, जीने की सज़ा पाई    है।

 शाम    तो    बेवफा   नहीं   होती 
खुद भी आयी है , तुझको   लाई है।

















बात हमने भी की नहीं लेकिन , बात तुमने भी की नहीं लेकिन।
सिर्फ दिल में जवाब   रखे  हैं , कुछ सवालात भी नहीं लेकिन।

ये कसक दिल में बरकरार रहे ,बिन कहे दिल को दिल से प्यार रहे
यूँ  लगे मिल के अभी आये हैं , चाहे अरसे से  मुलाकात भी नहीं लेकिन।




11.11.13

saaqui o' saaqui





            कैसी सरकार है, नशा बंद करने जाती है.
             इसको मालूम नहीं, मय कहाँ से आती है.
           
              थिरकती शाम की किरनो  से जाके पूछो तो

             हर इक किरन यहाँ  शबनम गिरा के जाती है








ग़ज़ल -         खुमार बाक़ी है  ---- 




अभी     तो  शाम  का  पहला खुमार बाक़ी है ,

कि   साक़ी  की   नज़रों  का  प्यार  बाक़ी है। 



मुझे उठाओ मत , महफ़िल में रहने दो यारों,

आखिरी   घूँट के संग , कुछ  दुलार बाक़ी है। 



ख़तम   तो   होएगी,  यह    रात , बेवफाई  से 

फ़िक्र किस बात की , कल कि बहार बाक़ी है। 





कि  सारी रस्मो-रिवाज़ों को छोड़ कर साक़ी !

पिला  दे नज़रों से , दिल की  पुकार  बाक़ी है।    





ये आग  सीने में ,    मुझको जला ना  पायेगी ,

 कि   उनके   क़दमों  की ,इसमे गुबार बाक़ी है। 
  





26.10.13

Shaam hone de




परायों  कभी  अपना , बना पाया , नहीं लेकिन 

मैं अपनो को कभी नज़दीक ला पाया, नहीं लेकिन ,

 ये मेरी कैसी मज़बूरी , नहीं मालूम है , यारों !

किसी रिश्ते को मैं अब  तक भुला पाया , नहीं लेकिन .... १ 




उड़ चलें गगन के पार चलो 

संग मेरे पंख पसार चलो,

जीवन को हाथों  थामे 

 बन कर विमान एक साथ चलो। ........ २ 














Ab to   charchaa   ye   aam  hone de,
Loogon   ko   badzubaan   hone   de,
Hum ko dar kya, hum banaate to nahin
Phir  se    baithenge, shaam   hone de....



अब   तो    चर्चा    ये    आम   होने   दे ,
लोगों   को     बदज़ुबान       होने     दे ,
हम को  डर  क्या,   हम बनाते तो नहीं
फिर   से    बैठेंगें    शाम     होने      दे.... 



Zindagi   chalati    ek   qareene    se,
Pal se,   hafte se,   aur maheene   se,
Haath  me   jaam   aur   mehfil   ho,
umra  badhati   hai  thoda  peene se...



                                             ज़िन्दगी    चलती    है   एक    क़रीने   से,
                                             पल    से  , हफ्ते   से,  और    महीने     से,
                                             हाथ    में     जाम    और    महफ़िल    हो,
                                             उम्र    बढ़ती       है     थोड़ा     पीने      से ....