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11.11.13

saaqui o' saaqui





            कैसी सरकार है, नशा बंद करने जाती है.
             इसको मालूम नहीं, मय कहाँ से आती है.
           
              थिरकती शाम की किरनो  से जाके पूछो तो

             हर इक किरन यहाँ  शबनम गिरा के जाती है








ग़ज़ल -         खुमार बाक़ी है  ---- 




अभी     तो  शाम  का  पहला खुमार बाक़ी है ,

कि   साक़ी  की   नज़रों  का  प्यार  बाक़ी है। 



मुझे उठाओ मत , महफ़िल में रहने दो यारों,

आखिरी   घूँट के संग , कुछ  दुलार बाक़ी है। 



ख़तम   तो   होएगी,  यह    रात , बेवफाई  से 

फ़िक्र किस बात की , कल कि बहार बाक़ी है। 





कि  सारी रस्मो-रिवाज़ों को छोड़ कर साक़ी !

पिला  दे नज़रों से , दिल की  पुकार  बाक़ी है।    





ये आग  सीने में ,    मुझको जला ना  पायेगी ,

 कि   उनके   क़दमों  की ,इसमे गुबार बाक़ी है।