लेबल

24.1.17

for kids



हाय  री  पढ़ाई  !



अप्रैल में स्कूल खुला, और मई  से शुरू पढ़ाई ,

भीग भीग कर आते - जाते, बीती जून जुलाई। .


अभी किताबें छुई नहीं थीं , फर्स्ट टर्म आ धमका

टाइम टेबल में गैप नहीं था, मेरा माथा ठनका।


टेबल, टेबल लैंप, किताबें , इनको  गले लगाकर ,
,
इक इक  दिन मुश्किल में  काटा , मैंने अगस्त में आकर.


सेप्टेम्बर  की नरम सुबह, मन सोने को ललचाये ,

आँखों में अंगार डाल, आये पापा  झल्लाये।


सबक  सीख कुछ मार्कशीट से,  कर थोड़ी  तैयारी

सेकंड टर्म की कठिन परीक्षा, है तलवार दुधारी।


दुर्गा पूजा  और   दशहरा , कैसे बैठूँ  पढने ,

ढोल ,मृदंग मजीरा सुन, मन लगता ऊधम मचाने।


अक्टूबर और नवम्बर ,फुलझड़ियों संग बाहर,

देखा  तब तो  खड़ा हुआ था सेकंड टर्म मुँह  बाकर।


राम राम कर जैसे तैसे , गया दिसंबर बीत ,

नाना की   गोदी में कट गयी , आधी सर्दी , शीत।


 और लबादा ओढ़े ओढ़े , बीत गयी जनवरी ,

तभी एक दिन पापा  पूछे , कैसी है तैयारी ?


एक  महीना बाकी है बस, इम्तहान होने में ,

सारी  छुट्टी बिता दिया बस खेल कूद, सोने में।


हालत खस्ता हुई हमारी,कोर्स बहुत है बाकी,

मुई फरवरी अट्ठाईस की, वो भी हुई न साथी।


मार्च महीने में है फाइनल , खड़ा हिमालय जैसा,

अभी पढ़ाई नहीं किया तो , फल  निकलेगा कैसा।


 और फरवरी काटी मैंने , आँखे गड़ा गड़ा कर ,

गलती का   एहसास हुआ तब ,मन ही मन पछताकर।




भुलक्कड़ नानाजी ..... ...



नाना मेरे लंबे चौड़े , डील डाल के भारी,

मगर भूल जाने की उनको बहुत बड़ी बीमारी। ..


आइसक्रीम का किया था वादा , भूल गए पर शायद ,

 खाना खा कर बैठे हैं वो,  मैं  कर रही क़वायद।


मम्मी बैठी इस कोने में , पापा अगल बगल में ,

कुछ बोली तो डाँट  पड़ेगी , पड़ गयी मैं मुश्किल में।


 खाँस खाँस कर किसी तरह से उनका ध्यान बंटाया ,

आइसक्रीम मुझे खानी , यह संकेतों में समझाया।


 नानाजी झट उठ कर बोले चलो सैर कर आएं ,

घर के अंदर बड़ी गरम है, खुली हवा  जाएँ।


नानाजी हाथ पकड़ कर,  झट मैं भागी  बाहर ,

दो दो कप खाया दोनों ने , दो दो मिनट के अंदर।


ये क्या ! ठंडा खाकर भी क्यों , नाना बहा पसीना  ?

अरे बाप रे ! भूल गए थे , जेब में पैसे रखना।





स्कूल  का सपना ......... 


ईश्वर !   सच कर मेरा सपना ,

एक मेरा स्कूल हो   अपना  . 

छड़ी  हाथ में, आँख पे चश्मा,

नाम हो मेरा, मिस  क्रिश्टिमा ,

सारी मिस आएं पढने को,

मेरी कैनिंग  से डरने को 


मिस सरला  को  लेट मैं  पाऊं 

अच्छी खासी डाँट पिलाऊँ। . 

मिस रूही को होम वर्क दूं ,

नेहा के पेरेंट्स बुलाऊँ ,


डॉग रूम की धमकी दे कर 

मन ही मन में मैं मुस्काऊँ। 

कान पकड़वाकर कैप्टेन के 

धूप में छह चक्कर लगवाऊं। 


पांच बजे तड़के  पापा से 

हिस्ट्री क्वेश्चन याद  कराऊँ। 

कहीं अटक जाएँ पापा तो,

पॉकेट मनी हजम कर जाऊं। 


मम्मी को   झिड़कूं खाने पर 

इतना भी खाया ना जाये ,

इसीलिये दुबली पतली है ,

बोझ बैग का उठा न पाए। 


ऐसा हो कुछ जादू मंतर,

उलट पलट हो जाए,

भोर में देखा सपना मैंने ,

शायद सच हो जाए। 



मेरी सजावट ..... 


जन्म दिन है मेरा माँ तो, मुझको ज़रा सजा  दो ना ,

जिसको ना पहनी हो अब तक , ऐसी फ्रॉक बना दो ना।


आसमान सा रंग हो जिसका , जड़े हों कई सितारे,

चन्दा सा इक बॉब लगा दो, जिसको देखें सारे।


बाहों का रंग बादल जैसा , मटमैला  और  सादा ,

आधी उसमे रुई भरी हो, और हो  पानी आधा।


इंद्रधनुष का   पैच वर्क हो , इन बाहों के नीचे ,

दंग  करे इस दुनिया को जब , हाथ करुं मैं पीछे।


और किनारा करना उसका , सागर के रंग जैसा ,

बीच बीच में हरा रंग हो , वन  उपवन के जैसा।


सूरज का  मेकअप करना माँ ! तुम मेरे चेहरे पर ,

हेयर बैंड सुनहरा  रखना, मेरे सर के ऊपर।


रूप अनोखा ले इतराऊं , मुझको आज  सजा दो माँ !

मेरे जैसा ना हो कोई , मुझको प्रकृति बना दो माँ !




हाथी का जुकाम ...... 



एक दिवस हाथी को हो गया ,

बहुत ही अधिक जुकाम ,

छींक उसे इतनी आयी कि ,

हुआ काम से वह बेकाम. . 


दौड़ा बैद की ओर तभी 

और बैद  थे श्री  सियार ,

उसे देख कर बोले तुमको 

हुआ अरे , क्या यार !


हाथी बोला , नाक को मेरी 

तुम ही  ज़रा समझाओ ,

 हुआ जुकाम मुझे भारी 

अब तुम ही मुझे बचाओ। 


सियार बोला , जाने तुमको 

दवा लगेगी  कितनी ,

अगर जुकाम हटाना है तो 

नाक कटा  दो  अपनी। 




मीठा झगड़ा -------


अकड़ के बोली गोल जलेबी , मुझसा  कौन रसीला ,

मुझको चाहे सारी दुनिया  , गाँव , शहर, औ  कबीला ।   


रबड़ी बोली चुप कर झूठी, मुझको क्या बतलाती ,

मुझको पाकर सारी दुनिया, बर्तन चट कर जाती ।  


काला जाम हँसा , हो हो कर, नहीं मिसाल हमारी ,

जिसका काला रंग हो उस पर मरती दुनिया सारी ।


सावन के बादल हैं काले , कृष्ण हैं काले , काले राम ,

जितना काला उतना मीठा, सबसे बढ़िया  काला जाम ।


रसगुल्ले ने देखा सबको , हल्की सी मुसकान भरी ,

मुझे चाहते राजा,  रानी,  बच्चे , बूढ़े   और   परी ।


 मन भी उजाला, तन भी  उजला , अंग अंग में मीठापन ,

मुझसे सुन्दर नहीं कोई है, देखा लो सब जाकर दर्पण ।


दूध बीच में आकर बोला,अब मत करो बड़ाई ,

मेरे ही कारण तुम सब ने, अपनी शान बढ़ाई ।


मेरे घी में तली जलेबी, मुझसे बनती  रबड़ी ,

काला जाम बने खोये से, क्यों डींग हांकता तगड़ी ।


मुझसे ही  छेना  बनता  है, छेने से रसगुल्ला ,

क्यों बघारते हो तुम शेखी , यूं ही खुल्लम खुल्ला । ,


मैं हूँ पिता तुम्हारा , तुम सब मुझको करो प्रणाम ,

मिलकर रहना भाई बहनों,  जाओ करो आराम ।