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27.8.16

Ghazalen



तेरी   याद ---


बड़ी  अजीब है , हर  रोज़   चली  आती है ,
ये  शाम  आ  के   तेरा नाम गुनगुनाती  है। 

उदास   बैठे  हैं , मंजर  पे  तेरी  यादों के ,
कि डूबती सी किरण , फिर से छेड़ जाती है। 

बिखरती  बूँद  का पानी भरा है  आँखों  में ,
कही  किनारे   पे, तस्वीर  तैर   जाती  है। 

मिज़ाज कैसा है उनका , ये पूंछते क्यों हो ?
मेरी  नज़र में वो  हर,  वक़्त मुस्कुराती है। 

डुबो  ही  देते  कहीं,  काश ! तेरी   यादों को ,
ये ग़म-गुसार  लहर , फिर से खोज लाती है। 

न जाने किसने शफ़क़ !, सब्र का दामन थामा ,
बड़ी    शरीर     है , तनहाई     मुस्कुराती   है। 






कुछ तो बोलिये ---- 


ढल   रही   है शाम , कुछ  तो    बोलिए। 
छोड़िये    अंजाम ,  कुछ   तो   बोलिए।

ना     कोई    जज़्बात   आँखों   से  बहे ,
दिल   को हांथों थाम, कुछ तो बोलिये। 

मत   कुरेदो   ज़ख्म   ताज़ा   हैं   अभी,
बन के फिर अनजान, कुछ तो बोलिए। 

और   कितनी  तोहमतें  सर पर लिए,
इश्क़  है   नाकाम, कुछ   तो बोलिये। 

हाथ   फैलाने   से   कुछ    होगा   नहीं,
है   खुदा   नाकाम, कुछ  तो    बोलिए। 

रात   की   स्याही   में  डूबी  है शफ़क़ ,
रौशनी   गुमनाम , कुछ   तो   बोलिए।



                   याद आयी है.… एक ग़ज़ल




 आज   फिर  तेरी याद  आयी है।
ज़िन्दगी ठहरी है, मुस्कुराई है।

मैं भी तनहा हूँ , तू भी तनहा है
जोड़ती  दोनों  को , तनहाई  है।

छू  लो  अलफ़ाज़ अपने  होंटों से
दिल ने सुनने की क़सम  खायी है।
 वक़्त  की  छाँव के ,  धुंधलके में
मर के, जीने की सज़ा पाई    है।

 शाम    तो    बेवफा   नहीं   होती 
खुद भी आयी है , तुझको   लाई है।

















बात हमने भी की नहीं लेकिन , बात तुमने भी की नहीं लेकिन।
सिर्फ दिल में जवाब   रखे  हैं , कुछ सवालात भी नहीं लेकिन।

ये कसक दिल में बरकरार रहे ,बिन कहे दिल को दिल से प्यार रहे
यूँ  लगे मिल के अभी आये हैं , चाहे अरसे से  मुलाकात भी नहीं लेकिन।